Monday 1 August 2016

द्वी दिनै की हौर छिन ई खैरी, मुठ बोटी कि रख ...

द्वी दिनै की हौर छिन ई खैरी, मुठ बोटी कि रख 
तेरी हिकमत आजमाणू बैरी, मुठ बोटी कि रख, 
ईं घणा डाळौं बीच छिर्की आलो घाम ये रौला मा भी 
सेक्की पाळै द्वी घडी हौर छिन, मुठ बोटी कि रखा

(दो दिनों का और है ये कष्ट, मुट्ठी ताने रख/ तेरी हिम्मत आजमा रहा है बैरी, मुट्ठी ताने रख/इन घने पेड़ों के अंधेरे को चीर कर भी आएगा उजाला/ पाले (तुषार) की हेकड़ी दो वक्त की और है, मुट्ठी ताने रख।)

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